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१५ अगस्त — आजादी या एक भूख, सिर्फ भूख ….

My poems, my thoughts, social issues ....
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१५ अगस्त — आजादी या एक भूख, सिर्फ भूख ….

पूरा देश आज आजादी का जश्न ६७ वी बार मना रहा है, और मैं सोच रहा हूँ कि मैं आज तक गुलाम क्यों हूँ ? गुलाम कहूँ तो कई मायनो में —
सबसे पहले तो में अपनी मानसिक्ता का गुलाम हूँ, जो न अंग्रेज ही हो पाई और न ही भारतीय ही रह गयी |

गुलाम हूँ अपनी महत्वकांसा/लालच का, जो पूरी होती भी नहीं और दिल से जाती भी नहीं |
गुलाम हूँ इस दिमाग/सोच/शख्शियत का, जो कभी इंशान बनी नहीं और जानवर मैं खुद को मानना नहीं चाहता |
और भी कई …. (जितना सोचना चाहो, … दूर ही निकलते जाता हूँ)

लेकिन इन सब बातो से ऊपर एक शब्द है “भूख” जो मुझे हर ऐसे दिन याद आता है, और ये “भूख” भी जाने क्यों गुलामी की ही तरह कई-कई हैं —

नेताओ/अफसरों की अपने-अपने लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराने की भूख |
indians को खुद को भारतीय साबित करने की भूख |
कर्मचारी/बच्चों को एक अतितिक्त छुट्टी और पिकनिक की भूख |
ड्राई डे पर, पीछे वाली खिड़की से ब्लेक में नशा बेचने की भूख |
और भी कई …. (फिर से जितना सोचूंगा उतना दूर निकल जाऊंगा)
और इन सब से बड़ी भूख, हम मजदूरों की भूख |

१५ अगस्त, यानी छुट्टी का दिन और छुट्टी मतलब काम बंद | जब काम नहीं तो मजदूरी बही नहीं और बिना मजदूरी रोटी कहा से आये ? बस एक भूख है |

मुझे आज की रोटी भी कल ही कम लेने चाहिए थी …. मगर
मुझे गुमान था — “मैं आजाद हूँ”

स्वतंत्रता दिवस की आप सब को बहुत सी सुभकामनाये, इस उम्मीद के साथ की, हम सब आजाद हो जाये . . आमीन | …”परु”

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