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आरक्षण का भूत . . .

My poems, my thoughts, social issues ....
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एक बार फिर आरक्षण की आग सुलग रही है . . .
उसी पर कुछ लिखने की कोशिश की है . . .


सरकार ने प्रोनत्ति में आरक्षण पर विधेयक पेश कर दिया है,
मुश्किल से बुझी भेद-भाव की आग को फिर से सुलगा दिया है !


जातियों के बीच फिर तल्खी का रुख इख्तियार कर दिया है,
यूँ मेरे बचपन के अज़ीज़ दोस्त को मुझसे जुदा कर दिया है!


चंद वर्षो की व्यवस्था को अब किसी का अधिकार कर दिया है,
इस निकम्मी सरकार ने मेधावियो को हासिये पर ला दिया है!


“आरक्षण” इस भूत ने पहले ही भविष्य को तमाम किया है,
आज फिर उनसे देश की रीड़ तोड़ने का इंतज़ाम किया है!

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