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मैंने देखा है …

My poems, my thoughts, social issues ....
My poems, my thoughts, social issues ....
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दूर कही साहिल से पहले,
बेबस लहरों को टूटते देखा है
पहले भी मायूस ख्वाबो को
गीले तकिये पर खोते देखा है!

बेसबब पलकों से गिर कर,
खामोश चाहतो को मरते देखा है
पानी से लिखे अफसानो को
तन्हा रातो में सुलगते देखा है!

लौटने वाली बहार के साथ,
साख से पत्तो को जुदा देखा है
मैंने अपने कुछ मरासिम को
शाम के बाद सिसकते देखा है!

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