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वो . . .

My poems, my thoughts, social issues ....
My poems, my thoughts, social issues ....
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जाने कब से था उन्हें बहार का इंतज़ार
आज लम्स से उसके हर कली खिल गयी!

किसी वीरान दस्त सा था आशियाँ मेरा
उसकी चंद सासों से हर दीवार महक गयी!

तपते सराबो सी प्यासी थी चाहत मेरी
जो खोली उसने ज़ुल्फ़ आज बर्शात हो गयी!

तारीकी में जीने की आदत सी थी मुझे
जो वो मुस्कुराई हर सम्त रौशनी हो गयी!

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