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ज़िन्दगी . . .

My poems, my thoughts, social issues ....
My poems, my thoughts, social issues ....
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ज़िन्दगी तू मिली मुझे
कभी बन कर प्रेमिका मेरी
और कभी बन कर रखेल,
बस ना मिल सकी कभी
तो तू बनकर मेरी दोस्त
और कभी बनकर मेरी माँ!

तू हर रात पिसती रही बिस्तर पर मेरे
चीखती-चिल्लाती,
पर ना मचल सकी कभी बाँहों मे मेरी
शर्माती-मुस्कुराती,

तू मुझे आजमाती रही, रुलाती रही
मैं भी तुझे बहलाता रहा, जीता रहा
कभी जीत पर अपनी मुस्कुराता रहा
तो कभी तेरी जीत पर सर धुनता रहा!

पर तू मुकम्मल कभी प्यार अपना मुझे दे ना सकी
और मैं भी तुझे रुसवा किये बगैर अपना ना सका!
ना मैं उस पार आ सका ना ही तुम इस पार आ सकी
और ये अहम् का दरिया बदस्तूर हमारे दरमिया रहा!

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