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एक रिश्ता . . .

My poems, my thoughts, social issues ....
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प्यार से महरूम हमारे रिश्ते की डोर
वक़्त के थपेड़ो में घिर कर,
कुछ इस कदर कमजोर हुई की
दूरियों की खलिश बढती रही
और चाहत की कड़िया टूटती रही!

कल जब मैंने उससे उसकी बेरुखी का जवाब मांग लिया,
बेवजह उसको भी डोर तोड़ने का एक नया सबब मिल गया
और मेरा प्यार सिसकियों में दफन हो गया !

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