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तुम ही कहो . . .

My poems, my thoughts, social issues ....
My poems, my thoughts, social issues ....
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क्या तुम मेरे ख्वाबों कि हकीक़त हो
या मेरे गुमशुदा प्यार कि जन्नत हो
या वही पुराना खूबसूरत से फरेब हो
तुम ही कहो, क्या तुम मेरी मोहब्बत हो ?

तेरे लरजते होंटो पर मेरा नाम तो था
उन झुकती आँखों में कोई पैगाम भी था
आगोश मैं क़त्ल का हर सामान भी था
तुम ही कहो, क्यों ये इंतज़ाम तमाम था?

तसब्बुर मैं तेरे हर सब गुजर जाती है
कायनात मेरी, तेरे नाम पे सिमट जाती है
वस्ल का ख्याल और आँख भर आती है
तुम ही कहो, क्यों तू याद हर पल आती है?

गुजरे तूफ़ान के अक्श साहिल पर छूट गए
अरमानो के घरोदे एक-एक कर टूट गए
थी प्यार कि दौलत उसे हरजाई लूट गए
तुम ही कहो क्यों मरासिम मुझसे रूठ गए?

एक रोज तेरे लबों पर गीत सजाऊंगा
भीगी पलकों को मीठे सपने दे जाऊंगा
अपनी धड़कने, मैं तेरे नाम कर जाऊँगा
तुम ही कहो क्या कभी तुम्हे जीत पाउँगा?

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