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ऐ दोस्त मुझे भी नफरत सिखा दे . . .

My poems, my thoughts, social issues ....
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ऐ दोस्त मुझे भी नफरत सिखा दे
इस उल्फत से मुझे कुछ न मिला
आबे-ज़फाओं से आजिज़ हूँ मैं
शायद थोड़ी से मुझे वफ़ा मिले!

फ़क़त इन आसुओं के समुन्दर में
दूर तक सर्द यादों के ज़जीरें हैं
बीते लम्हों की उफनती मौजो में
साहिल पर डूबती हुई कसती है!


मरासिम से हांसिल मेरे खजाने में
रोते अशरारों के बिखरे लफ्ज़ हैं
कुछ सूखे गुलाब हैं किताबों में
और एक लरजता सा एहसास है!

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