शायद सोजे वफ़ा कम है नीमसब अजिअतों से तभी उन्हें गुरेज़ है मेरी रफ़ाक़तों से, वो दानिस्ता हमें हरीफों में सुमार करते है यूँ ही नहीं हमें रस्मे-दुनियां से रु-ब-रु करते है!
अक्सर हाले दिल सुनाने वो मेरे ठिकाने पर आते है क्यों दिन-रात सुलगते है कहते-कहते थम जाते है! जब भी दोस्तों से मिलते है वो इकरार करते हैं सामने मेरे आये तो इकरार से इनकार करते हैं!
लैब पे कुछ, दिल में कुछ, वो पल में रंग बदलता है कमबख्त गिरने से पहले, कहा हमें ये एहसास होता है!
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