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ये दर्द तो गीली शबनम है . . .

My poems, my thoughts, social issues ....
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पलकों की नमी सूख जाने दे
एक पल ख़ुशी की धूप ओड़ ले,
हल्दी रुख की गुलाब होने दे
लबों पर खिलती हँसी रख ले!

ये दर्द तो गीली शबनम है
चूमेगी पहली किरण, और
लम्हों में ख़ाक हो जायेगी!

धडकनों को यूँ ही बहकने दे
आँखों में डूबते सैलाब रख ले,
आगोश में अरमान पिघलने दे
बाहों में जलता लम्हा भर ले!

ये गुनाह तो एक मौज है
टकराएगी साहिलों से, और
बूँद बन कर बिखर जायेगी!

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