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“इश्क” तो गुनाह बन गया है. . .

My poems, my thoughts, social issues ....
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दोस्तों ये महीना है फरवरी, यानि की प्यार का महीना, महीना फूलों का, महीना चोकलेटों का, और महेंना दिल-इ-इजहार का….


इस महीने की सुरुआत में ही अपने दिल में भी एक हूक उठी, और ऐसे ही कुछ लिख दिया,,,
आप सब की नज्र है, उम्मीद है आपको पसंद आएगा

इश्क कहता है खुद से आज क्या तेरा नाम है,
सजदा हुआ करता था कभी, आज गलियों मैं बदनाम है!

दिल की गहराइयों मैं बसा करता था
जुबान से नहीं आँखों से बया हुआ करता था
क्या कहु किस कदर “पाक”
में एक हंसीं लफ्जे-जज़्बात हुआ करता था!

वो वक़्त ना जाने कहाँ खो गया है,
वजूद मेरा भी लबों तक सिमट गया है!

कहता हूँ कभी खुद से
दर्द भी थे जहाँ सब मीठे
वो जहाँ कहाँ खो गया है
ख्वाब हुए करते थे जहाँ सच्चे
वो गुलिस्तान कहाँ खो गया है
इश्क मैं जान चली जाये तो ग़म नहीं
वो एक ज़ज्बा कहाँ खो गया है ?
क्या कहू किस कदर “शोख”
में एक वरक अशरार हुआ करता था!

ये वक़्त क्यों आज काफिर सा बन गया है,
सोचता हूँ अब “इश्क” तो गुनाह बन गया है!

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