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संरक्षण की जगह गोली . . .

My poems, my thoughts, social issues ....
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आज के दैनिक जागरण के पहले पेज की खबर “युवक को मारने वाला बाघ ढेर ” ! अन्दर के पन्ने में ” बाघ की खाल के साथ एक युवक दबोचा”!
एक महीने में ये दूसरी बार है जब आदमखोर बाघ को गोली मार दी गयी, वो भी कॉर्बेट पार्क (रामनगर में) में जो बाघ के संरक्षण के लिए जाना जाता है!

1411, यह है बाघों की ओफिसिअल संख्या, कुल बाघो की सही तादात क्या होगी इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं! और इसी तरह इन कथित आदमखोरो को गोली मारना ज़ारी रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा रास्ट्रीय पशु सिर्फ किताबों के पन्नो में ही सिमट जायेगा!

क्या इन आदमखोरो बाघो को मरना इनता ही ज़रूरी था? क्या हम इन्हें किसी ऐसे रिजर्व पार्क में नहीं छोड़ सकते थे, जहाँ हम मनुष्यों का दखल न/न के बराबर हो? यूँ भी ये बाघ आदमखोर तभी बन गए क्योंकि हमने ही इनके आवास को इतना नुकसान पहुचाया की, जब-तब बाघ और हमारा आमना-सामना होने लगा! फिर क्यों हमारे किये की सजा इन शानदार जीवो को भुगतनी पड़ रही है!

शायद हमारा रास्ट्रीय पशु अपने साम्राज्य (जंगल) से कही ज्यादा सुरक्षित पिंज़रे (चिडयाघर) में है! “माना जेल की ज़िन्दगी किसी को पसंद नहीं पर ये मौत से तो यकीनन बेहतर है” शायद यही इस राजा की किस्मत है…

१४११ फिर से गौर करिए! अपने रास्ट्रीय पशु के प्रति अपने कर्तव्यों को समझे.
Please save me . . .

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